लेखनी कहानी -09-Feb-2023
सफर
दो जिगरी मित्र परुषोत्तम और नरोत्तम का सामना अचानक एक ही बोगी की आमने सामने वाली सीट पे हुआ। संयोज से दोनों ही अमृतसर जा रहे थे। परुषोत्तम की पकी हुई दाढ़ी अनुभव का भारी चट्टान छुपाए हुए थी और नरोत्तम की तनी और ऐंठी हुई मुछ दिल जिगर की बुलंदी को दरसा रही थी।
दोनोें काफी दिनों के बाद मिले थे। बातचीत के क्रम में परुषोत्तम ने कहा ’’ मेरा सफर अधुरा ही रहा, उपलब्धि तो हासिल हुई मगर गृहस्त सुख सम्पत्ती से वंचित रहा। ’’
नरोत्तम ने भी कहा ’’ मित्र, मेरा भी सफर अधुरा ही रहा। गृहस्त सुख-सम्पत्ती से धनी ही रहा, मगर उपलब्धि का निर्धन ही रहा। ’’
दोनों मित्र एक दुसरे की उपलब्धि को तरस रहे थे और एक दुसरे के सफर को पूर्ण कह रहे थे। गनतव्य स्थान पर पहूंच कर दोनों खुद को कोस रहे थे।
समाप्त
अदिति झा
11-Feb-2023 12:08 PM
Nice 👌
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Varsha_Upadhyay
10-Feb-2023 09:00 PM
Nice 👍🏼
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
09-Feb-2023 10:54 PM
बहुत खूब
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